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१ श्री शाश्वता-अशाश्वता जिन चैत्यवन्दन
(रचयिता-पं. श्री पद्मविजयजी महाराज)
कोडी सातने लाख बहोत्तेर वखाणु, भुवनपति चैत्य संख्या प्रमाणु । एंशी सो जिनबिम्ब एक चैत्य ठामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥१॥ कोडी तेरशेने नव्याशी वखाणे , साठ लाख ऊपर सवि बिम्ब जाणे । असंख्यात व्यंतर तणा नगर नामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ २ ॥ असंख्यात तिहां चैत्य तेम ज्योतिषीये , बिम्ब एकशत एंशी भाख्या ऋषिये । नमे ते महा (ऋद्धि) सिद्धि नवनिधि पामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ३ ॥ वली बार देवलोकमां चैत्य सार , ग्रेवेयक नव मांहि देहरां उदार । तिम अनुत्तरे देखीने म पडो भामे , नमो सासय जिनवरा मोक्षकामे ॥ ४ ॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१८८