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श्री जिनपूजादि चैत्यवन्दन फल रचयिता - विद्वान् श्री विनय विजयजी महाराज
प्ररणमी श्री गुरुराज श्राज, जिनमन्दिर केरो । पुण्य भरणी करशुं सफल, जिनवचन भलेरो ॥ १ ॥
दहेरे जावा मन करे, चोथतणुं जिनवर जुहारवा उठतां, छट्टु
जावा माण्डय जेटले, अट्ठमतणु डग भरतां जिन भरणी, दशमतणु जाईशु जिनवर भरणी, मारग होवे द्वादशतणु पुण्य, भक्ति
फल पावे |
पोते पावे ॥ २ ॥
फल
फल
चालन्ता ।
मालन्ता ॥ ४ ॥
अर्ध पन्थ जिनहर तरणे, पन्दर दीठे स्वामीतरणो भवन, लहिये एक
होय ।
जोय ॥ ३ ॥
उपवास ।
फल
जिनहर पासे प्रावतां, छमासी श्राव्या जिनहर बारणे, वर्षितप फल
मास ॥ ५ ॥
सिद्ध ।
लीध ॥ ६ ॥
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १८६