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सहस्र सत गुण शोभते प्रभु, सहस्र नाम भनन्तजी , अपर जग में वीर भनितो, महावीर कहन्तजी । बधत बधते सुख बधे कुल, वर्द्धमान जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम्।२४।
तनु जो राम सुसिद्धि निसपति, मास फागुन सुदि कही , तीन दश तिथि भूमि को सुत (मंगल),नगर फगुना कर लही। कर जोड़ के मुनि मेघ भाखे, शरण राखू जिनेश्वरम् , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।२५।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१८५