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________________ सूर करे आरती शंख बाजे, घंट का रणकार ही , डफ भेरी भल्लर तार बाजे, झांझरा भरणकार हो । बह निरत निरतें ध्यान पूजे, मल्लिनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१६। प्रभु क्षमासागर शील प्रागर, कोटि रवि जिम ज्योति ही, भनि बानी सुन्दर अमियसरवी, तृपति सब जिय होत ही। नित करो किरपा जानि, सेवक मुनिसुव्रत जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।२०। अनन्त केवल ज्ञान सुन्दर, अमित बल गुण प्रागरं , अमित रूप सरूप जिनेश्वरं, अमित दर्शन-सागरम् । पग नमत सुर नर नाग किन्नर, श्री नमिनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।२१। जिन लख जीवन बन्ध छोड़ी, भये दयाल विशालजी , तिय त्याग राजमति धार दीक्षा, हुए शिवपुर लालजी। बाल ब्रह्मचारी कहाये, नेमिनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।२२। सुर नाग-नागन सेव करते, सीस फन बरसात हो, फूल अलसी तनुज वरणं, भनित जग विख्यात ही। पारस ते तुम अधिक स्वामी, पार्श्वनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।२३। मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१८४
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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