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भवतापहरणं सुख - कारणं, विमल ज्ञान सुथापनं , सब नरक टारन दुःख-निवारन, मुक्ति रामा आपनम् । अनन्त गुरण तुम मांहि प्रभुजी, अनन्तनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१४।
सब ईत-भीत न रहे कोई, समोसरन प्रताप तें, जीव वैर भाव विहाय जावें, मोर साँप मिलाप तें। तिन धर्म को उपदेश भाख्यो, धर्मनाथ जिनेश्वरं, सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१५॥
सहु शान्ति वरते जगत मांही, शान्ति शान्ति जो ध्यावही , मद काम क्रोध ही शान्त होवे, शान्त खोटे भावही । जो करे पूजा शान्ति प्रापे, शान्तिनाथ जिनेश्वरं, सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१६।
हरि तू ही गणपति तू ही, तू ही शङ्कर शेष ही , जिन तू ही ब्रह्मा चन्द सूरज, तू ही विष्णु शिवेश हो । सब कुन्थ आदिक करत रक्षा, कुन्थनाथ जिनेश्वरं, सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१७।
शुभ भाव पूजा द्रव्य पूजा, करे सुर-नर-नार ही , मेट के सब जगत के दुःख, लहे भवजल पार हो । जिस नाहिं कोई जगत में अरि, श्री अरनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ।१८।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१८३