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श्री चतुर्विशति जिनस्तुति
(रचयिता-श्री मेघमुनिजी महाराज)
सुखकरण स्वामी जगतनामी, आदि-करता दुःखहरं, सुर इंद चंद निंद वंदत, सकल अघहर जिनवरम् । प्रभु ज्ञानसागर गुनहि प्रागर, आदिनाथ जिनेश्वरं, सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ॥१॥ तप करत केवलज्ञान पायो, सर्व लोक-प्रकाशनं , जिन आठ कर्म विदार दीनो, मोहतिमिरविनाशनम् । दुःख जनम-मरना दूर कीनो, अजितनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ॥२॥ अरि काम क्रोध ते लोभ मारयो, पञ्च इन्द्री-वशकरं , दुविकार विषया सर्व जीते, योग-मारग पगधरम् । इह भव-समुद्रे पार पायो, सम्भवनाथ जिनेश्वरं , सब भविक जन मिल करो पूजा, जपो नित परमेश्वरम् ॥३॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१८०