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श्री नेमिनाथ भगवाननी स्तुति
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तोड़ी स्नेहो नवभवतणा राजुला नार साथे छोड़ावीने पशु गरण तथा दान दोधु स्व हाथे । दीक्षा लोधी सहस न सही रेवतोद्यान मांहे एवा नेमीश्वरजिन नमु मोक्ष-कैवल्य त्यां ॥ २२ ॥
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श्री पार्श्वनाथ भगवाननी स्तुति
जेरणे कुडे
हि सलगता काष्ठमांथी कढ़ाया, बीजा मुहे अनशन नमस्कार मन्त्रो सुणाया । तेना योगे असुरधरगेन्द्र स्वरूपे थयो ए पूजो एवा जिनपति कृपा सिन्धु पाश्र्वेशने ए ॥ २३ ॥
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श्री महावीर स्वामी भगवाननी स्तुति विश्वे व्हाला जगगुरु महावीर देवाधिदेवा
न
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सारा भविक सहुने मुक्तिना मिष्ट मेवा । सेवे सारा त्रण भुवनना लोक सौ हर्षथी ए, आजे मारा हृदय घटमां श्रावता भावथी ए ॥ २४ ॥
कलश
( हरिगीत छंदमां )
गुरु नेमिसूरीश पट्टधर लावण्य सूरीश्वर तरणा श्रीदक्ष शिप्य सुशील विजये चरण समरी पार्श्वना । रसनंदनिधिशशिमान विक्रम साल १९६६ प्राश्विन मासमां, 'स्तुति - चौबीसी' रची उमंगे धर्मी अमदाबाद मां ।। १ ।।
॥ इति 'स्तुति - चौबीसी' समाप्ता ॥
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १७६