________________
श्री अरनाथ भगवाननी स्तुति षट्खंडोनु अधिपतिपणु भोगवी त्याग कीधो , ने दोक्षामां अति तप तपी मुक्तिनो मार्ग लीधो । आवीने जे शिवनगरमां लोक अग्रे बिराज्या , पूजो ते श्री अरजिन सदा विष्टपेथी विराम्या ॥ १८ ॥
श्री मल्लिनाथ भगवाननी स्तुति मित्रोने कनक पुतली अन्नथी नित्य पूरी , तार्या तें तो भवजलधिथी देइने बोध भूरी। कायाने शीलसलिलथकी स्नान तें तो कराव्यु, एवा मल्लि-प्रभु तुम तणु ध्यान सारु धरायु ॥ १६ ॥
श्री मुनिसुव्रत भगवाननी स्तुति जे स्वामीनां दरिसरण थतां प्रात्म आनंद पावे , ते स्वामीनां पदकमल ने स्पर्शतां दुःख जावे । जेनी जोड़ी जगत भरमां कोइ ना ए दिखाये , तेवा साचा जिन-मुनि महा सुव्रतस्वाम गाए ॥ २० ॥
श्री नमिनाथ भगवाननी स्तुति जे स्वामीना जनम समये देवदेवेन्द्र पाई , मेरु शृङ्ग सुविधि सहित स्नात्र पूजादि पाई। धोवे त्यांही निज हृदयना कर्मना मेल सर्वे , ते स्वामी श्री नमिजिनतणी चाहु सेवा ज सर्वे ॥ २१ ॥
मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१७८