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* श्री शीतलनाथ भगवाननी स्तुति 8. संसारथी तपित सहुने शीत छाया ज आपे , ने लागेला बहु समयना प्रात्मना कर्म का। आपे नित्ये विमल खुशबो बावना चन्द जेवी , आपो वाणी मुज हृदयमां शीतलस्वाम तेवी ॥ १० ॥
* श्री श्रेयांसनाथ भगवाननी स्तुति * श्रेयस्कर्ता जनक-जननी भव्यना दुःख-हर्ता , भ्राता त्राता जगत भरना छो वली विश्व भर्ता । श्रेयांसो सौ सुरतरुपमा पूरनारा सदा ए , हे श्रेयांस ! स्वशिशुतणा श्रेय अंशो पुरो ए ॥ ११ ॥
* श्री वासुपूज्य भगवाननी स्तुति * जे स्वामीने जगत जनता पूज्यना पूज्य माने , ते स्वामिने विबुध जनता विश्वना देव जाणे । वन्दे जेने सकल जनता भावथी सर्वदा ए , एवा ते श्री जगत भरवां वासुपूज्येश पाए ॥ १२ ॥
ॐ श्री विमलनाथ भगवाननी स्तुति * विश्वे जेनी शुभविमलता सर्वथी श्रेष्ठ भासे , तेनो पासे स्फटिकमणिनी कान्तिभी न्यून भासे । जेना संगे विमल हृदयो भव्यनां नित्य थाए , वंदो ते श्री विमल विभु ने हाथ जोड़ी सदा ए ॥ १३ ॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा को प्राचीनता १७६