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पूर्व दिशे उत्तर दिशे, पीठ रची त्रण सार । पंच वरण जिनबिम्बने, स्थापी जे सुखकार ॥
- अनन्तलब्धिनिधान श्री गौतम स्वामी गणधर महाराज रचित 'श्री जगचिन्तामणि चैत्यवन्दन' में कहा है किसत्ताणवइसहस्सा, लक्खा छप्पन्न अट्ठकोडियो । बतिसय बासिमाई, तिअलोए चेइए वंदे ॥४॥ पनरस कोडिसयाइं, कोडिबायाल लक्ख अडवन्ना । छत्तीससहस असिइं, सासबिबाइं पणमामि ॥५॥
अर्थ-आठ करोड़ छप्पन लाख सत्तानवे हजार बत्तीस सौ बयासी (८५६६७३२८२) इतने तीनों लोक में जो चैत्य हैं मैं उनकी वन्दना करता हूँ। पन्द्रह सौ करोड़, बयालीस करोड़ अठावन लाख छत्तीस हजार अस्सी (१५४२५८३६०८०) इतनी शाश्वती प्रतिमायें हैं, इनको मैं प्रणाम करता हूँ।
'जं किंचि सूत्र' में कहा है कि-- जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाई जिबिंबाइं, ताइं सव्वाइं वंदामि ॥१॥
अर्थ-स्वर्ग में, पाताल में और मनुष्यलोक में जो
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मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१७१