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________________ मनो मे सर्वजन्तूनां शुभं चिन्तयतु सदा 1 वचो ब्रूतां शुभं तद्व-दिति भावोऽभिवर्द्धताम् ॥ ३३ ॥ शुभं मेऽखिलजन्तुभ्यो, गृहणात्वक्षगणः सदा । अङ्गोपाङ्गानि मे तेषां प्रति शुभ्रं चरन्तु वः ॥ ३४ ॥ सर्वे सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखमाप्नुयात् ॥ ३५ ॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥ ३६ ॥ आचार्य श्री ज्ञानविमलसूरि कृत 'चैत्री पूनम देववन्दन' स्तुति में कहा है कि जेह अनंत थया जिन केवली, जेह हशे विचरंता ते वली । जेह सासय सासय त्रिहुं जगे, जिनपडिमा प्रणम् नित जगमगे ॥ D प्राचार्य श्री विजयलक्ष्मीसूरि कृत 'ज्ञानपंचमी देववन्दन' में कहा है कि मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १७०
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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