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है * दर्शन-पाठ *
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दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनम् । दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम् ॥ प्रभु-दर्शन सुख-सम्पदा, प्रभुदर्शन नवनीध । ' प्रभु-दर्शन से पाइए, सकल पदारथ सिद्ध ॥१॥ भावे जिनवर पूजिए, भावे दीजे दान । भावे भावना भाविए, भावे केवलज्ञान ॥ २ ॥ जिवड़ा ! जिनवर पूजिए, पूजा नां फल होय । राजा नमे प्रजा नमे, आरण न लोपे कोय ॥ ३ ॥ फूलों केरा बाग में, बैठे श्री जिनराज । जिम तारा में चन्द्रमा, तिम शोभे महाराज ॥ ४ ॥ प्रभु नाम की औषधि, खरे भाव से खाय । रोग शोक पाये नहीं, सभी संकट दूर थाय ॥ ५॥
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१६२