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[उड़ीसा की हस्तिगुफा से जो शिलालेख प्राप्त हुआ है, उस पर यह लेख अंकित है ।]
(१३) ओसवालों के उत्पत्ति-स्थान प्रोसियां और कोरण्टा के जिनमन्दिर श्री वीर निर्वाण से ७० वर्ष के पश्चाद् के हैं। वे आज भी वहाँ पर विद्यमान हैं। श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा आचार्यश्री रत्नप्रभ सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित की हुई है।
(१४) सुप्रसिद्ध श्री अर्बुदाचल-अाबू के समीप श्री मुण्डस्थल तीर्थ में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा अपने छद्मस्थपने के ७ वें वर्ष पधारे थे, उसी समय वहाँ पर राजा श्री नन्दिवर्धन ने जिनमन्दिर बनवाया था। ऐसा शिलालेख वहाँ पर है।
(१५) विख्यात श्री विशाला नगरी की खुदाई से जो मूत्तियों के खण्डहर निकले हैं उन्हें पुरातत्त्व-वेत्ताओं ने २२०० वर्ष पुराने बताया है।
(१६) कच्छ भद्रेश्वर में श्री वीर निर्वाण से २३ वर्ष के पश्चाद् के जिनमन्दिर का जीर्णोद्धार दानवीर श्री जगडूशाह ने करवाया। इस प्रकार यह तीर्थ प्रायः कई हजार वर्ष पुराना है।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१५८