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वाड़ ने प्रख्यात श्री राणकपुर तीर्थ में नवाणु करोड़ की लागत से १४४४ स्तम्भ युक्त एक विशालकाय भव्य जिनमन्दिर बनवाया।
(६) संवत् १३७१ वर्षे श्री समरोशा रंग सेठ ने . श्री शत्रुजय महातीर्थ का पन्द्रहवाँ उद्धार ग्यारह लाख की लागत से करवाया।
(१०) संवत् १५८७ वर्षे चित्तौड़ (मेवाड़) निवासी श्री करमशाह ने श्री शत्रुजय महातीर्थ का उद्धार करवाया।
(११) लंका की राजकुमारी सुदर्शना ने भडौंच (भरुच) में समली विहार नामक श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान का भव्य जैनमन्दिर बनवाया, जिसे आज ग्यारह लाख वर्ष हुए हैं।
(१२) 'महामेघवाह चक्रवर्ती राजा खारवेल ने अपने पूर्वजों के समय में राजा नन्द द्वारा ले जाई गई भगवान ऋषभदेव की मूत्ति वापिस लाकर आचार्य श्री सुस्थित सूरिजी महाराज से प्रतिष्ठा करवाई थी। यह मूत्ति श्री श्रेणिक महाराजा ने बनवाई थी।'
· मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१५७