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________________ श्री अष्टापद पर्वत पर चौबीस तीर्थंकर-भगवन्तों की प्रतिमाएँ, उनके वर्ण, लंछन और देह-शरीर के आकार के अनुसार स्थापित करवाई हैं। (२) गुजरात के श्री शंखेश्वर तीर्थ (गाँव) में विशालकाय श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनमन्दिर में बिराजित अति प्राचीन श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूत्ति गत चौबीसी के श्री दामोदर तीर्थंकर के समय आषाढ़ी श्रावक द्वारा बनवाई हुई आज भी मौजूद है । (३) श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के निर्वाण के २५० वर्ष बाद, आर्य श्री सुहस्ती सूरीश्वरजी महाराज के द्वारा प्रतिष्ठित श्री अवन्ती सुकुमाल की स्मृति में उनके पुत्ररत्न द्वारा बनवाई हुई श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूत्ति श्री अवन्ती पार्श्वनाथ के नाम से आज भी उज्जैन नगर में क्षिप्रानदी के समीप में स्थित है, जो कालक्रम से भूगर्भ में चली गई थी; वह पुनः विक्रम संवत् प्रवर्तक श्री विक्रमादित्य महाराजा के समय महान् प्रभावक आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकरजी महाराज ने नूतन 'श्री कल्याणमन्दिर स्तोत्र' की रचना द्वारा प्रकट की है। (४) श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के निर्वाण मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१५५
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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