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सं. १९३१ कात्तिक कृष्णा १३ मन्दवासरे जीर्णपत्रादुद्धृतः ।।
लि. भोजक गिरधरहेमचंद पटणी, हाल अहमदाबाद, विद्याशाला।
उपर्युक्त संस्कृत संवाद गुर्जरभाषाऽनुवाद के साथ 'जैनधर्म प्रसारक' नामक मासिक पत्र में मुद्रित हो चुका है। फिर भी जैन मन्दिर-मूत्तियों की प्राचीनता की सिद्धि के लिए उपयोगी होने के कारण स्वर्गीय आचार्य श्री देवगुप्त सूरिजी [ज्ञानसुन्दरजी] महाराज ने इसका हिन्दी अनुवाद कर छोटी पुस्तिका रूपे प्रकाशित करवाया है। [वीर सं. २४६३]
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१५३