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________________ है इसका नाम करुणा है। ये लोगों को सत्त्व एवं करुणा का मार्ग बतला रहे हैं ।। १३ ।। अष्टौ च दिग्गजा एते, गर्जासहस्वरूपतः । आदित्याद्याः ग्रहा एते, नवैव पुरुषाः स्मृताः ॥ १४ ॥ अर्थ-हे देवि ! हाथी और सिंह के स्वरूपों को धारण किये हुए ये आठों दिशाओं के दिग्गज (दिक्पाल) हैं तथा ये नौ पुरुष आदित्यादि नवग्रह हैं। [जो सर्वज्ञदेव के चरणों की सदैव सेवा कर अपने जीवन को पावन-पवित्र बना रहे हैं] ।। १४ ।। यक्षोऽयं गोमुखो नाम, आदिनाथस्य सेवकः । यक्षिणी रुचिराकारा, नाम्ना चक्रेश्वरी मता ॥१५॥ अर्थ-हे देवि ! यह गोमुख नाम का यक्ष आदिनाथ (भगवान) का सेवक है तथा सुन्दर स्वरूप वाली चक्रेश्वरी देवी सेविका है ।। १५ ।। इन्द्रोपेन्द्रा स्वयंभर्तु-र्जाताश्चामरधारकाः। पारिजातो वसन्तश्च, मालाधरतया स्थितौ ॥ १६ ॥ अर्थ-हे देवि ! इन्द्र और उपेन्द्र ये स्वयं भगवान के सेवक बनकर चामर डुला रहे हैं तथा ये जो दो माला मूत्ति-१० . मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१४५
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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