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आप कृपा करके मेरे इन सब प्रश्नों के उत्तर. शीघ्र दीजिये। मुझे तो महान् ही आश्चर्य हो रहा है कि 'यह मन्दिर किस देव का है ?'
[इन प्रश्नों के उत्तर शंकरजी नीचे प्रमाणे दे रहे हैं-] शृणु देवि ! महागौरि, यत् त्वया पृष्टमुत्तमम् । कोऽयं पर्वतमित्येष, कस्येदं मन्दिरं प्रभो ! ॥ ६ ॥
अर्थ-पार्वती के इन प्रश्नों को सुनकर महादेवजी कहते हैं कि हे देवि ! तुमने मुझे जो ये उत्तम प्रश्न पूछे हैं उनका उत्तर मैं तुम्हें देता हूँ, तुम एकाग्रचित्त से सानन्द सुनो ॥ ६ ॥
पर्वतो मेरुरित्येषः, स्वर्ण-रत्नविभूषितः ।
सर्वज्ञमन्दिरं चैतद्, रत्नतोरणमण्डितम् ॥ ७ ॥ अर्थ-यह स्वर्ण और रत्नादिकों से विभूषित यानी समलंकृत 'मेरु' नाम का पर्वत है अर्थात् सुमेरु पर्वत है तथा इस पर्वत पर सर्वज्ञदेव (जिनेश्वरदेव) का रत्नखचित तोरणमण्डित मन्दिर है अर्थात् यह विशाल एवं मनोहर जिनमन्दिर है ।। ७ ।।
अयं मध्ये पुनस्साक्षात्, सर्वज्ञो जगदीश्वरः। त्रयस्त्रिशत् कोटिसङ्ख्या , यं सेवन्ते सुरा अपि ॥८॥
मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१४२