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________________ चक्र क्या है ? तथा समीप में ही खड़े ऐसे मृग (हिरण) पौर मृगी (हिरणी) कौन हैं ? ।। २ ।। के वा सिंहगजाः के वा, के चाऽमी पुरुषा नव । यक्षो वा यक्षिणी केयं, के वा चामरधारकाः ॥३॥ अर्थ-हे स्वामिन् ! इन देव के समीप ये सिंह और हाथी कौन हैं ? तथा ये नौ पुरुष कौन हैं ? ये यक्ष और यक्षिणी क्या हैं ? तथा ये चामर डुलाने वाले भी कौन हैं ? ॥ ३ ॥ के वा मालाधरा एते, गजारूढाश्च के नराः। एतावपि महादेव ! को वीरगा-वंश-वादकौं ॥ ४ ॥ अर्थ-हे महादेव ! ये माला धारण किये हुए कौन हैं ? ये हाथियों पर बैठे हुए पुरुष कौन हैं ? तथा वीणा और बाँसुरी बजाने वाले दो व्यक्ति कौन हैं ? ।। ४ ।। दुन्दुभेदकाः के वा, को वाऽयं शङ्कवादकः । छत्रत्रयमिदं कि वा, किं वा भामण्डलं प्रभो ! ॥५॥ अर्थ-हे प्रभो ! इनके समीप में ये दुन्दुभि वाजिन्त्र बजाने वाले कौन हैं ? तथा ये तीन छत्र क्यों हैं ? और यह प्रकाशमान भामण्डल क्या है ? ।। ५ ।। . मूत्ति की सिद्धि एव मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१४१
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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