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(१२) मैत्रं प्रसाधनं स्नान, दन्तधावन-मज्जनम् । पूर्वाह्न एव कुर्वीत, देवताञ्च पूजनम् ॥
[मनुस्मृति, अध्याय ४ श्लोक १२५] भावार्थ-शौचादि स्नान और दातुन इत्यादि करना तथा देवताओं का पूजन प्रातःकाल में ही करना चाहिये ।
इससे मूर्तिपूजा ही सिद्ध होती है ।
जैनग्रन्थों में और जैनेतर ग्रन्थों में मूर्तिपूजा के सम्बन्ध में ऐसे अनेक शास्त्रीय प्रमाण एवं सम्मतियाँ उपलब्ध हैं।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१३८