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भावार्थ-हे ईश्वर ! आपने सृष्टि के प्रारम्भ में धर्मों की स्थापना की, उन्हीं आपने बहुत से शरीर अवतार रूप धारण किये हैं।
इससे भी ईश्वर का साकार रूप शरीर होना सिद्ध . होता है।
(६) एह्यश्मानमातिष्टाश्मा भवतु ते तनूः ।
__ [अथर्ववेद २।१२।४]
भावार्थ-हे ईश्वर ! तुम आओ और यह पत्थर की मूत्ति तुम्हारी तनू यानी शरीर बन जाय । ___ इस प्रकार के वर्णन से ईश्वर की साकारता सिद्ध होती है।
(१०) "प्रादित्यं गर्भ पयसा समद्धिः सहस्रस्य प्रतिमां विश्वरूपम् । परिवृद्धि हरसामाभिमंस्थाः। शतायुषं कृणुहि चीयमानः।"
भावार्थ-सहस्र नाम वाला जो ईश्वर है, उसकी स्वर्णादि धातुओं से बनाई हुई मूत्ति को अग्नि में डाल कर उसका मल-विकार दूर करना चाहिये । पश्चात् उस ईश्वर की मूर्ति को दूध से धोना और शुद्ध करना
मूर्ति की सिद्धि एव मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१३६