________________
(२) या ते रुद्र ! शिवा तनूरघोरापापकाशिनी । तया नस्तन्वासन्तमया गिरीशं चाभिचाकशीहि ।
[यजुर्वेद, अध्याय १६, मन्त्र ४६] भावार्थ-हे रुद्र ! तुम्हारी मूत्ति कल्याण करने वाली सुन्दर और पवित्र है । उसके द्वारा हमारा कल्याण बढ़े।
(यहाँ 'तनू' शब्द से ईश्वर की साकारता बताई है।)
(३) त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
_[यजुर्वेद, अध्याय ३ मन्त्र ६] भावार्थ-हम तीन नेत्र वाले शिवजी की पूजा करते हैं, सुगन्धित पुष्टिकारक पका हुआ खरबूजा जिस तरह अपनी लता से अलग हो जाता है, उसी तरह हमको मृत्युमरण से अलग करके मोक्षपद की प्राप्ति कराइये ।
इससे ईश्वर की साकारता सिद्ध होती है ।
(४) नमस्ते नीलग्रीवाय, सहस्राक्षाय मीढुषे । अथो ये अस्य सत्त्वानो, हन्तेभ्योऽकरन् नमः ॥
[यजुर्वेद अध्याय १६, मन्त्र ८] भावार्थ-नीलकण्ठ, सहस्र नेत्र से सम्पूर्ण विश्व के
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१३३