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प्रत्येक चौबीसी में पन्द्रह क्षेत्रों में मिलाकर इन चार नामों वाली चार शाश्वती जिनप्रतिमाएँ हैं। इसी कारण उनको शाश्वत जिन कहते हैं। __मूत्तिपूजा के समर्थन में आगमग्रन्थों के अतिरिक्त भी अनेक ग्रन्थ हैं। जैसे-चौदहपूर्वी प्राचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी महाराज कृत 'श्री आवश्यक नियुक्ति' आदि, पूर्वधर वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज कृत 'पूजाप्रकरण', १४४४ ग्रन्थों के प्रणेता आचार्य श्रीमद् विजय हरिभद्र सूरीश्वरजी महाराज विरचित 'पूजा पंचाशक प्रकरण', 'षोडशक प्रकरण', 'ललितविस्तरा' तथा 'श्रावकज्ञप्ति वृत्ति', प्राचार्य श्रीमद् शान्ति सूरीश्वरजी महाराज रचित 'चैत्यवन्दन बृहद्भाष्य', अवधिज्ञान के धारक श्री धर्मदास गणि महाराज कृत 'उपदेशमाला', नवाङ्गी वृत्तिकारक प्राचार्य श्रीमद् अभयदेव सूरीश्वरजी महाराज विरचित 'पंचाशकवृत्ति' तथा कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज रचित 'श्री योगशास्त्र' इत्यादि ।
ऐसे जैनशास्त्रों के अनेक ग्रन्थों में जिनचैत्य-जिनमन्दिर, जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा-जिनबिम्ब एवं उनकी पूजा का वर्णन स्पष्ट रूप में महापुरुषों ने प्रतिपादित किया है ।
. मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१३१