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(५०) श्री अनुयोगद्वार सूत्र में नामादि चार निक्षेपों के अधिकार में स्थापना निक्षेप में श्री अरिहंत भगवन्तों की मूति-प्रतिमा की स्थापना की है।
(५१) श्री ठाणाङ्ग सूत्र में नन्दीश्वर द्वीप का वर्णन किया है। उसमें चार अंजनगिरि, सोलह दधिमुख एवं बत्तीस रतिकर पर्वतों का उल्लेख है। उन सभी पर्वतों के मध्य भाग में सिद्धायतन होते हैं। कुल बावन जिनचैत्य जिनमन्दिर माने गये हैं और उन जिनचैत्यों में शाश्वती जिनमूर्तियाँ हैं। इस ठाणाङ्ग सूत्र में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि
"चत्तारी जिणपडिमानो सव्वरयरणामइत्तो संपलियं कणि सन्नाप्रो थूभाभि मुहासो चिठ्ठति । तं जहा रिसभा वद्धमाणा चंदाणणा वारिषेण ।"
अर्थात-शाश्वत सिद्धायतनों में शाश्वती प्रतिमाएँ जो बिराजमान हैं, वे सभी रत्नमय पद्भासन बैठी हुई और स्तूपों के सम्मुख रही हुई हैं। इतने उल्लेख के बाद शाश्वती प्रतिमाओं के नाम लिखे हुए हैं
'ऋषभ, वर्द्धमान, चन्द्रानन और वारिषेण' इन . नामों वाली चार जिनमूर्तियाँ हैं ।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१३०