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________________ (२५) श्री समवायांगसूत्र में प्रभु के परम भक्त श्री आनन्दादि दस श्रावकों के चैत्य आदि का वर्णन किया हुआ है । (२६) श्री उववाईसूत्र में कहा है कि श्री अंबड़ परिव्राजक ने तथा उसके ७०० शिष्यों ने श्री वीतरागदेव को नमन-वन्दन करने की और उनकी मूर्ति - प्रतिमा को छोड़कर अन्य किसी को भी नमन-वन्दन नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी ! (२७) 'प्रश्नव्याकरण' नामक आगम ग्रन्थ में कहा है कि चैत्य यानी जिनमन्दिर की सेवा-भक्ति-वैयावच्च कर्म-निर्जरा का कारण है । यथा अत्यन्त बाल दुब्बल, गिलारण वुड्ढ सर्वक । कुल गरण संघ चेइयट्ठे च गिज्जरट्ठी ॥ भावार्थ - प्रति बाल, दुर्बल, ग्लान, वृद्ध, तपस्वी, कुल, गरण, चतुर्विध संघ और चैत्य यानी जिनमन्दिर - जिनमूर्ति की वैयावच्च ( सेवा - भक्ति) कर्म - निर्जरा में कारण होती है । ( २८ ) श्री तत्त्वार्थ सूत्र के कर्त्ता पूर्वधर महर्षि श्री मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १२३
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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