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-- (१६) श्री भगवतीसूत्र के दसवें शतक के छठे उद्देश में शक्रेन्द्र द्वारा अपनी सुधर्म नाम की सभा में जिनेश्वर भगवन्त के दाढ़ों की आशातना के वर्जन का स्पष्ट वर्णन है।
(२०) श्री जीवाभिगमसूत्र में विजयदेव द्वारा किये गये दिव्य नाटक का वर्णन है ।
(२१) श्री भगवतीसूत्र में प्रभु के सम्मुख इन्द्रादि द्वारा किये हुए दिव्य नाटक की प्रशंसा का वर्णन है । ___(२२) श्री ज्ञातासूत्र में भवनपति निकाय के देवियों द्वारा की हुई प्रभुभक्ति की प्रशंसा का वर्णन है ।
(२३) श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णन है कि श्री जिनेन्द्रदेव की दाढ़े और अस्थि-दंत आदि अवयव, देव अपने स्थान में ले जाकर उनको पूजते हैं, इतना ही नहीं किन्तु अग्नि-दाह के स्थान पर प्रमुख स्तूप की सुन्दर रचना करते हैं।
(२४) श्री उपासकदशांगसूत्र में कहा है कि श्री आनन्द श्रावक ने अन्य तीथियों को, अन्य देवीदेवताओं को तथा उनकी मूत्ति-प्रतिमाओं को वन्दननमस्कार इत्यादि नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनतां-१२२