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(E) “से भयवं ! तहा रूवं समणं वा महारणं. वा चेइय घरे गच्छेज्जा ?
"हंता गोयमा ! दिणे दिणे गच्छेज्जा। से भयवं जत्थ दिरणे ण गच्छेज्जा तो कि पायच्छित्तं हवेज्जा ?
"गोयमा ! पमाय पडुच्च तहारूवं समणं वा माहणं वा जो जिणघरं न गच्छेज्जा तो छ8 अहवा दुवालसमं पायच्छित्तं हवेज्जा ।"
अर्थ- "हे भगवन् ! क्या श्रमण या श्रावक को (प्रतिदिन) जिनमन्दिर जाना जरूरी है ? हाँ, गौतम ! श्रमण या श्रावक को प्रतिदिन जिनमन्दिर जाना चाहिए ।
"भगवन् ! जिस दिन न जाय उस दिन उनको क्या प्रायश्चित्त करना होगा ?
"गौतम ! प्रमाद के वश जिस दिन श्रमण या श्रावक जिनमन्दिर नहीं जायेंगे उस दिन उनको छठ (बेले) का अथवा पाँच उपवास का भी प्रायश्चित्त हो सकता है।"
__ [श्री महाकल्पसूत्रे प्रोक्तमिति] (१०) 'श्री आचाराङ्गसूत्र' के दूसरे श्रुतस्कन्ध में तीर्थवन्दना के सम्बन्ध में कहा है कि
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-११५