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जम्माभिसेय-निक्खमण चरणप्पायनिव्वाणे । नंदीसरभोमनयरेसु ॥ १॥
दियलोभवरणमंदर
श्रद्वावयमुज्जिते गयग्गपयए व धम्मचक्के य । पासरहावत्तनगं चमरुपायं च वंदामि ॥ २ ॥
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अर्थ - "श्री जिनेश्वर - तीर्थंकर परमात्मा के जन्माभिषेक की भूमि, दीक्षा-संयम लेने की भूमि, केवलज्ञान उत्पत्ति की भूमि, निर्वाण मोक्ष पाने की भूमि, देवलोक के सिद्धायतन, भुवनपतियों के सिद्धायतन, नंदीश्वर द्वीप के सिद्धायतन, ज्योतिषी देवविमानों के सिद्धायतन, अष्टापद, गिरनार, गजपद तीर्थ, धर्मचक्र तीर्थ, श्री पार्श्वनाथ भगवान के सभी तीर्थ और जहाँ पर श्री महावीर स्वामी भगवान काऊस्सग्ग- कायोत्सर्ग में रहे हैं वह तीर्थ, इन सबको मैं वन्दन करता
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( ११ ) श्री ज्ञातासूत्र में और श्री ठारणांगसूत्र में भी कहा है कि
मल्लिकुमारी ने अपनी प्रतिकृति - प्रतिमा बनवाकर शरीर की अशुचिता उस प्रतिमा - मूर्ति द्वारा दिखाकर उन छहों राजकुमारों को प्रतिबोधित किया था ।
( १२ ) श्री भगवतीसूत्र के प्रारम्भिक मंगलाचरण
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ११६