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जिनेश्वर भगवान की पूजा है। मूत्ति तो मात्र निमित्त है अर्थात् उनके सर्वोत्तम गुणों की पूजा श्री जिनेश्वरदेव की प्रशम रस झरती और प्रशान्त रस नितरती ऐसी निर्विकारी वीतरागमय मुद्रा के साक्षात्प्रत्यक्ष दर्शन कराने वाली मूत्ति-प्रतिमा है। जिनकी विधिपूर्वक अजनशलाका यानी प्राणप्रतिष्ठा सुन्दर रूप से हुई है, ऐसी श्री जिनेश्वरदेव की भव्य मूत्ति का दर्शन, वन्दन एवं पूजन करते समय कोई भी आराधक मूत्तिपूजक अपने मुख से ऐसे शब्दों का उच्चारण नहीं करेगा कि अरे ! मूत्ति तू खूब अच्छी है, बहुत ही बढ़ियासुन्दर है, महामूल्यवान है । तुझे बनाने में कुशल कारीगर ने कितना कौशल दिखाया है, इत्यादि । वहाँ पर तो भक्त भाव-भक्ति से दर्शन-वन्दन एवं पूजन करते हुए वीतराग प्रभु की वीतरागमयता की भूरि-भूरि प्रशंसा ही करता है। इतना ही नहीं, किन्तु प्रभु के पवित्र स्वरूप को देखता हुआ निजात्म स्वरूप में ध्यानमग्न होता है। अनन्त गुणों के खजाने ऐसे प्रभु के गुणों को सतत स्मरण करता है तथा अपनी आत्मा को प्रभुमय बनाने की उत्तम भावना भाता है। कर्म की निर्जरा करता है। श्री जिनेश्वरदेव-अरिहन्त भगवन्तों की मूत्ति-प्रतिमाओं के दर्शन, वन्दन एवं पूजन इत्यादि
मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१०७