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पूजक संघ' श्रद्धा एवं बहुमानपूर्वक मानते हैं तथा उन्हीं की सूत्र, अर्थ, वृत्ति, भाष्य और चूणि रूप पंचाङ्गी को भी उसी तरह सहर्ष मानते हैं ।
श्री जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी वर्ग एवं तेरापंथी समाज मूति-प्रतिमा निषेधक हैं। उनके द्वारा माने हुए बत्तीस पागम सूत्रों के नाम निम्नानुसार हैं
"ग्यारह अंग, बारह उपांग, नंदी, अनुयोग, आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, बृहत्कल्प, व्यवहार, निशीथ और दशाश्रुतस्कंध ।”
इन बत्तीस आगमसूत्रों में भी स्थान-स्थान पर स्थापना निक्षेपों की उचित सत्यता, माननीयता एवं वन्दनीयता-नमस्करणीयता सही रूप में बताई हुई है। मूत्ति की वन्दनीयता एवं पूजनीयता के विषय में जैनआगम-सिद्धान्तशास्त्रों में अनेक प्रमाण हैं। उनके सैकड़ों उल्लेख आज भी आगम-सिद्धान्त द्वारा मिल रहे हैं। उनमें से कुछ उल्लेख निम्नलिखित हैं__ मूत्तिपूजा क्या है ? जब ऐसा प्रश्न हमारे सामने आता है, तब हमें दीर्घ दृष्टि से विचारना चाहिये कि मूत्तिपूजा केवल मूत्तिपूजा नहीं है, किन्तु श्री
मूर्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-१०६