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(६) प्रभु के सामने धूप को छेदों वाले ढकने वालो धूपदानी में रखकर पूजा में काम में लिया जाता है । सचित्त होने पर भी पूजा में प्रमाद न होने से इसमें हिंसा की सम्भावना नहीं है।
(७) प्रभु के सामने दीपक को लालटेन में ढककर काम में लिया जाता है। यह भी सचित्त होने पर भी पूजा में प्रमाद न होने से हिंसा सम्भव नहीं है ।
(८) प्रभु के सम्मुख अक्षत (चावल) तथा नैवेद्यमिठाई पकवान भी अचित्त होने से चढ़ाने में हिंसा नहीं है।
जिनमत्ति-प्रतिमापूजन के विधि-विधानों में उपयोग हेतु लाये जाने वाले द्रव्यों को चढ़ाने से हिंसा कदापि नहीं होती है। जिनराज की भक्ति से निरवद्य अहिंसा का पालन होता है। जिनमूत्ति-प्रतिमा सम्मुख चढ़ाये जाने वाले द्रव्यों को अभयदान मिलता है तथा निःस्वार्थ सेवाभक्ति करने वाला धर्मीजीव-धर्मात्मा प्रान्त में संयमसाधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करता है । [२८] मत्ति की वन्दनीयता एवं पूजनीयता के
शास्त्रीय प्रमाण जगत् प्रसिद्ध जैनदर्शन का सारा आधार जैन
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१०३