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श्री अरिहंत-तीर्थंकर भगवन्तों के मुख्य बारह गुणों में भी 'सुरपुष्पवृष्टिः' ऐसा पाठ आता है ।
(३) प्रभु की विद्यमान-जीवित अवस्था में इन्द्रादि देव पुष्प-फूलों से प्रभु की पूजा-भक्ति आदि तो करते ही हैं। इतना ही नहीं किन्तु वीतराग विभु की मूति-प्रतिमा के प्रति तथा प्रभु की मृतदेह की दाढ़ानों के भी प्रति वैसी ही श्रद्धा रखते हैं और अनुपम भक्ति भी करते हैं।
(४) जिस तरह श्री जिनेश्वर-तीर्थकर परमात्मा के जन्म तथा दीक्षा के समय उनको सचित्त जल से स्नान कराया जाता है, उसी तरह निर्वाण के बाद भी उनके मृतदेह को सचित्त जल से ही स्नान कराने के पश्चात् दाहसंस्कार किया जाता है। जिनमूति-जिनप्रतिमा का भी प्रक्षाल इन्हीं जन्म-दीक्षा-निर्वाण कल्याणकों का निमित्त पाकर ही कराया जाता है। कारण कि श्री जिनेश्वर तीर्थंकर परमात्मा को सचित्त जल से ही स्नान कराने का आचार है। आगमशास्त्रों में भी इस बात का स्पष्ट उल्लेख है ।
इसी माफिक दीक्षार्थी जब दीक्षा लेता है तब उसको सचित्त जल से ही स्नान कराया जाता है और जब वह
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१०१