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अर्थ-जैसे कुत्रा खोदते समय कैसा श्रम होता है और कैसी तृषा-प्यास बढ़ती है, किन्तु कुए में पानी निकलने पर हमेशा के लिये तृषा-प्यास का दुःख मिट जाता है; वैसे ही (भगवान की) द्रव्यपूजा से भव का भ्रमण खत्म हो जाता है और मोक्षसुख की प्यास भी शान्त हो जाती है। इसलिये श्रमण और श्रमणियों को भावपूजा तथा श्रावक-श्राविकाओं को द्रव्यपूजा एवं भावपूजा दोनों ही अवश्य अहर्निश करनी चाहिये ।
जिनचैत्यों, जिनमन्दिरों और उनमें अंजनशलाकाप्राणप्रतिष्ठा की हुई बिराजमान जिनमूत्ति-प्रतिमाओं के विधिपूर्वक दर्शन-वंदन एवं पूजनादिक से आत्मा को अनुपम अपार लाभ मिलता है । - वीतराग श्री जिनेश्वरदेव के दर्शनादि करके भव्य जीव सम्यग्दर्शनादि आत्मगुणों को प्राप्त करते हैं। प्रान्ते सर्वविरति द्वारा अपने सर्वकर्म का क्षय करके मोक्ष के शाश्वत, अव्याबाध सुख को प्राप्त करते हैं। [२७] जिनमुत्तिपूजा में हिंसा सम्बन्धी
शंका और समाधान जिनमूर्तिपूजा यानी जिनप्रतिमापूजन पहान् फलमूत्ति-७ . मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६७