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________________ देने वाली होती है। ऐसा वर्णन श्री आवश्यक-वृत्ति में आता है। (११) पुरुषादानीय श्री स्थंभनपार्श्वनाथ भगवान की भव्य मूत्ति के स्नात्र (पक्षाल) जल से नवाङ्गी टीकाकार श्री अभयदेव सूरीश्वरजी महाराज का गलनकोढ़ का रोग चला गया था। (१२) राजा भोज की सभा में जैनाचार्य श्री मानतुङ्ग सूरीश्वरजी महाराज के शरीर पर लगी हुई लोहे की ४४ या ४८ बेड़ियाँ, प्रभु की स्तुति रूप नूतन रचित श्री भक्तामर स्तोत्र [श्री आदिनाथ स्तोत्र की रचना और उद्घोषणा द्वारा टूट गई थीं और जैनशासन की अनुपम प्रभावना में अभिवृद्धि हुई थी। . (१३) अपनी पत्नी सीताजी को लेने के लिये लंका जाते समय श्री रामचन्द्रजी ने समुद्र पार उतरने के लिये वीतराग श्री जिनेश्वर भगवान की मूर्ति के सामने तीन उपवास किये। श्री धरणेन्द्रदेव ने आकर श्री स्थंभनपार्श्वनाथ भगवान की मूत्ति दी, जिसके परम प्रभाव से श्री रामचन्द्रजी आदि समस्त सैन्य ने आसानी से समुद्र पार कर लिया। ऐसा वर्णन 'श्री पद्मचरित्र' नामक ग्रन्थ में आता है। . मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६५
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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