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(पक्षाल) जल से श्री श्रीपाल राजा का तथा सातसौ कोढ़ियों का अठारह प्रकार का कोढ़ रोग सर्वथा दूर हो गया था और इन सभी की काया कंचन के समान हो गई थी।
यही श्री केसरियानाथ की प्राचीन भव्य मूत्ति आज भी सुप्रसिद्ध भारत देश के राजस्थान प्रान्त के मेवाड़प्रदेश में श्री उदयपुरनगर के निकटवर्ती श्री केसरियाजीतीर्थ में विद्यमान है और 'श्री केसरियानाथ' नाम से सुविख्यात है।
(२) कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज विरचित 'श्री त्रिषष्टि शलाका चरित्र' के अन्तर्गत 'जैन रामायण' में कहा है कि लंकाधिपति राजा रावण ने श्री अष्टापदतीर्थ पर जिनेश्वर-तीर्थंकर भगवन्त श्री ऋषभदेवादि की मूत्तियों के सम्मुख रानी मन्दोदरी सहित संगीतमय सुन्दर भक्ति करते हुए तीर्थंकर नामगोत्र बांधा था ।
(३) आज से ८५००० वर्ष पूर्व की यह बात है किश्रीकृष्ण महाराजा और श्री जरासंध राजा का परस्पर महान् युद्ध हुआ। उसमें जरासंध राजा ने कृष्ण महाराजा की सेना पर 'जरा' यानी वृद्धावस्था विद्या का
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मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६१