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स्वरूप है और ध्येय परमात्मपद मोक्षपद प्राप्त करने का है अर्थात् ध्याता, ध्येय और ध्यान इन तीनों का एकाकारपना ही मोक्षपद की प्राप्ति है । साध्य की सिद्धि के लिये साधन अत्यन्त आवश्यक हैं। साध्य का लक्ष्य . सामने रखकर साधन अवश्य अपनाने हैं। आत्मविकास में जिनबिम्ब और जिनागम दोनों ही साधन हैं; इन दोनों को अपनाने से प्रात्मा की मुक्ति अवश्य ही होगी, इसमें कोई फेरफार नहीं; न तर्क, न दलील, न शंका और न सन्देह-संशय ।
(२६) जिनमत्ति की पूजादिक से रोगादिक
का दूरीकरण और अनुपम लाभ श्री जिनेश्वरदेव की मूत्ति-प्रतिमा की पूजा करने से पूजक को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह से अनुपम लाभ मिलता है । भूतकाल में प्रभु की पूजा-पूजनादिक से अनेक लोगों को अनेकानेक लाभ मिले हुए हैं। जैसे
(१) आचार्य श्रीमद् रत्नशेखर सूरीश्वरजी महाराज विरचित 'सिरि सिरिवाल कहा' (श्री श्रीपाल कथा) में कहा है कि-'उज्जैन नगरी में श्री केसरियानाथ (श्रीऋषभदेव') की मूत्ति के सम्मुख, श्री सिद्धचक्रयन्त्र के स्नान
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-६०