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कर लेनी चाहिए । जैसे मध्याह्न के समय सूर्य मण्डल पर दृष्टि पड़ते हो तुरन्त पुनः खोंचली जाती है, वैसे इधर भी समझना।
इधर यही सोचने का है कि अश्लील-खराब चित्र-फोटू आदि से मन के परिणाम अशुभ हो सकते हैं तो फिर क्या वीतराग परमात्मा की मूत्ति-प्रतिमा के दर्शन-वंदन एवं पूजन से शुभ भाव नहीं उत्पन्न हो सकते हैं ? अवश्य कहना ही पड़ेगा कि शुभ आलम्बन-निमित्त से शुभ भाव प्रगट हो सकते हैं । इस बात में अंश मात्र भी संशय रखने की गुंजाइश नहीं है। मूर्ति-प्रतिमा भले पत्थर की या अन्य भी क्यों न हो, किन्तु अपने अन्तःकरण का उच्च भाव पत्थर इत्यादि की मूत्ति-प्रतिमा में भी परमात्मा का दर्शन करता है । इससे उसको अपूर्व लाभ होता है। आत्मिक विकास का सारा आधार अन्तःकरण-हृदय के शुभ भाव पर है लेकिन प्रशस्त पालम्बन बिना शुभ भाव प्रगट नहीं होते हैं । इसलिये शुभ भाव प्रगट करने के लिये जिनमूर्तिजिनप्रतिमा का श्रेष्ठ पालम्बन कभी भी छोड़ना नहीं । पाँचवें आरे में जिनबिम्ब और जिनागम ये ही दोनों
आलम्बन सर्वश्रेष्ठ हैं। (२५) सगण से निर्गुण और साकार से निराकार विश्व में अनेक पालम्बन हैं। उनमें प्रशस्ततम
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-८८