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(४५) हे प्रभो! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय तेरा नाम लेने से आराधक आत्मानों के नाम कर्म का क्षय कराती है।
(४६) हे प्रभो ! तेरो मूत्ति, तेरी प्रतिमा दर्शनपूजन-वन्दन करने से आराधक आत्माओं के नीच गोत्र कर्म का क्षय कराती है।
(४७) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा दर्शनपूजन में तन-मन-धन की शक्ति का सदुपयोग करने से आराधक आत्माओं को वीर्यान्तराय इत्यादि पाँच अन्तराय कर्म का क्षय कराती है।
.. (४८) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा भव्यजीवों-भव्यात्माओं को प्रत्येक धर्मक्रिया में, धर्मानुष्ठान में और आत्मा को परमात्मा बनाने में तथा मुक्तिपुरी में ले जाने के लिये परम आलम्बनभूत बनती है ।
(४६) हे प्रभो ! तेरी मत्ति, तेरी प्रतिमा प्रतिदिन तीन काल दर्शनीय, नमस्करणीय, वन्दनीय, पूजनीय, उपासनीय, अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है।
(५०) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा अहर्निश
____मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-८३