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(४०) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय चैत्यवन्दन एवं स्तुति-स्तवनादि करने वाली ऐसी आराधक आत्माओं के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय कराती है ।
(४१) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा तेरे भावमय दर्शन-पूजन के समय प्राराधक आत्माओं के दर्शनावरणीय कर्म का क्षय कराती है ।
(४२) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन - -पूजन के समय सभी जीवों के प्रति समभाव रखने वाली तथा यातनापूर्वक वर्त्तन करने वाली ऐसी प्राराधक आत्माओं के असाता वेदनीय कर्म का क्षय कराती है ।
(४३) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय श्री अरिहन्त परमात्मा और श्रीसिद्ध भगवन्त के गुणों का स्मरण करने मात्र से प्राराधक आत्माओं के क्रमशः दर्शनमोहनीय कर्म का क्षय और चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय कराती है ।
(४४) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शन-पूजन के समय आराधक आत्माओं के विशुद्ध अध्यवसाय की तीव्रता के फलस्वरूप अशुभ आयुष्य कम का क्षय कराती है ।
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ८२