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________________ (२७) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरो प्रतिमा 'ध्यानस्थ दशा' मय है। (२८) हे प्रभो ! तेरो मूत्ति, तेरी प्रतिमा विश्व के सब देवों की मूर्तियों से 'न्यारी, अनेरी और अनूठी' है । (२६) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा अति आकर्षक एवं प्रशस्ततम है । (३०) हे प्रभो! तेरी मूर्ति, तेरी प्रतिमा 'ध्यानस्थ' एवं 'पाह लादजनक' है। (३१) हे प्रभो ! तेरो मूत्ति, तेरी प्रतिमा साक्षात् तेरे स्वरूप का दर्शन कराने वाली 'निर्मल दर्पण' के समान है। (३२) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा पिण्डस्थ पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत इन चारों अवस्थाओं का साक्षात्कार कराती 'महान् प्राकृति' है । (३३) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा तेरे दर्शनवन्दन एवं पूजन इत्यादिक का सुन्दर लाभ लेने वाली आराधक आत्मा को पवित्र करती है। मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-८०
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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