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(१६) हे प्रभो! तेरो मूति, तेरी प्रतिमा भव्यजीवों भव्यात्माओं को संयम द्वारा मोक्षनगर में ले जाने वाली 'दिव्य एरोप्लेन-विमान' के सदृश है ।
(२०) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा के नेत्रयुग्म 'प्रशमरसनिमग्न' हैं ।
(२१) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा का मुख 'शरदपूर्णिमा के चन्द्रमा' के समान है ।
(२२) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा के दोनों हाथ शस्त्रों-हथियारों से सर्वदा शून्य हैं ।
(२३) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति का उत्संग (खोला) स्त्री के संग से सर्वदा रहित है।
(२४) हे प्रभो ! तेरी मूर्ति, तेरो प्रतिमा समचतुरस्र संस्थान से समलङ्कृत है ।
(२५) हे प्रभो ! तेरी मूत्ति, तेरी प्रतिमा निराकार ऐसे सिद्धभगवन्तों का 'साकार रूप' है, अरिहन्त परमात्माओं का प्रत्यक्ष स्वरूप है। - (२६) हे प्रभो ! तेरो मूर्ति, तेरी प्रतिमा 'प्रशान्त मुद्रा' युक्त है।
. मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-७६