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________________ ( ५२ ) हे प्रभो ! दर्शनगुण की प्राप्ति के लिए मैं पहली प्रदक्षिणा देता हूँ। * 'हे प्रभो ! ज्ञानगुणस्य प्राप्त्यर्थं द्वितीयप्रदक्षिणा ददामि। हे प्रभो ! ज्ञानगुण की प्राप्ति के लिए मैं दूसरी प्रदक्षिणा देता हूँ। * 'हे प्रभो! चारित्रगुणस्य प्राप्त्यर्थं तृतीयप्रदक्षिणा ददामि। हे प्रभो ! चारित्रगुण की प्राप्ति के लिए मैं तीसरी प्रदक्षिणा देता हूँ। (३) प्रणामत्रिक-प्रणाम यानी नमस्कार-नमन करना । वह तीन प्रकार का है। अंजलिबद्ध, अर्धावनत और पंचांग प्रणिपात । उनमें (१) अंजलिबद्ध प्रणाम-परमात्मा को देखते ही अपने दोनों हाथ जोड़कर सिर में लगाकर और सिर को झुकाते हुए 'नमो जिरणाणं' कहकर जो प्रणाम किया जाता है वह 'अंजलिबद्ध प्रणाम' है । (२) अर्धावनत प्रणाम-परमात्मा के गर्भद्वार के पास पहुँच कर अपनी कमर तक काया-शरीर को झुकाकर
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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