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( ८१ ) तीसरी निसीही-प्रभु की अष्टप्रकारी पूजा पूर्ण करने के पश्चाद् जिनचैत्यवन्दन का प्रारम्भ करने के पूर्व द्रव्यपूजा सम्बन्धी कार्यों के त्याग करने हेतु तीसरी निसीही बोलने की होती है।
(२) प्रदक्षिणात्रिक-प्रदक्षिणा यानी फेरी । भगवान की दाहिनी ओर से बाँयों ओर चारों तरफ तीन बार दी जाती है। प्रदक्षिणा देते समय बातें नहीं करनी चाहिए, किन्तु प्रभु की प्रार्थनाएँ, दोहे इत्यादि बोलने चाहिए। ___ अनादिकाल से इस चार गति रूप संसार में परिभ्रमण कर रही आत्मा के भवभ्रमण को दूर करने के लिए श्रीजिनेश्वर भगवान के चारों तरफ तीन प्रदक्षिणा दी जाती है। तथा सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूपी रत्नत्रय की प्राप्ति के लिए भी तीन प्रदक्षिणा दी जाती है ।
ये तीन प्रदक्षिणा परमात्मस्वरूप प्राप्त कराने वाली और भवभ्रमण को सदा के लिए मिटाने वाली हैं ।
प्रदक्षिणा के दौरान जहाँ जिनमूत्ति दिखाई देती हो, वहाँ पर सिर झुकाकर नमन करना चाहिए। इस तरह तीन प्रदक्षिणा देवें।
* पहली प्रदक्षिणा देते समय कहना कि-'हे प्रभो ! दर्शनगुणस्य प्राप्त्यर्थं प्रथमप्रदक्षिणा ददामि ।'