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________________ ( ८० ) दूसरी निसीही गंभारे के द्वार पर जब पहुँचे तब कहनी चाहिए। इसके कहने का कारण है कि-मन्दिर के भीतर सांसारिक बातें या सांसारिक प्रवृत्ति नहीं होनी । अर्थात्-जिनमन्दिर की सफाई और शिल्पी के कार्य की भलाई या बुराई कहने का मैं त्याग करता हूँ। अब सबसे पूर्व केसर-चन्दन रखने के कमरे में जाकर अपने कपाल-ललाट पर दो भौंहों के बीच मध्य भाग में बराबर प्राज्ञाचक्र के बिन्दु पर बादाम के आकार का, या दीपक की ज्योत जैसा तिलक करें। उस समय यह भावना भाना कि हे देवाधिदेव जिनेश्वर भगवान ! मैं आपकी आज्ञा शिरोधार्य करता हूँ। आपकी उपासना के लिए उपस्थित हुआ हूँ। यह उपासना आपकी आज्ञानुसार मैं विधिपूर्वक अवश्य करूंगा। इसके बाद सामने ही वीतराग परमात्मा की मूत्ति यदि दिखाई देती हो तो तत्काल दोनों हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर नमन करते हुए 'नमो जिणाणं' कहना। यह अंजलिबद्ध प्रणाम नमस्कार है । १. पुरुषों को दीपक की ज्योत जैसा लम्बा तिलक अपने ललाट पर करना चाहिए और स्त्रियों को चन्द्रमा के समान गोल तिलक अपने कपाल में करना चाहिए ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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