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________________ ૬૪ ) भेजकर कालिकसुर कसाई को अपने पास बुलाया और समझाया कि तुम सिर्फ एक दिन पाँच सौ पाड़ों की हिंसा मत करो । लेकिन उसने तो प्रतिदिन पाँचसौ पाड़ों की हिंसा करने का संकल्प किया हुआ था, इसलिए वह नहीं माना । आखिर महाराजा के हुक्म से उसके दोनों पैर बाँधकर उसे एक कुए में लटका दिया गया जिससे उसको हिंसा करने का निमित्त ही न मिले । महाराजा को अब पक्का विश्वास हो गया था कि उस कालिकसुर कसाई ने आज हिंसा न की होगी । इसलिए प्रभु के पास जाकर श्रेणिक महाराजा ने कहा अब तो मुझे नरक में नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि, कालिककसाई को कुए में रखने से वहाँ एक भी पाड़ा न होने से उसने आज हिंसा नहीं की । प्रभु ने कहा कि हे श्रेणिक ! उसने वहाँ पर भी हिंसा की है । पता लगाने पर श्रेणिक महाराजा को मालूम हुआ कि उसने तो कुए में रहकर भी अपने हाथ से पाँचसौ पाड़ों के चित्र के द्वारा मूर्तियाँ बनाकर काटी हैं-हिंसा की है । कि, भगवन् ! श्रेणिक महाराजा की आशा पूरी न हो सकी । कारण कि, कालिक कसाई द्वारा उन काल्पनिक मूर्तियों की हिंसा हो गई थी ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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