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संसारवर्ती प्रत्येक प्राणी को प्रत्येक कार्य में जड़ वस्तु-पदार्थ का सहकार अहर्निश अवश्य ही लेना पड़ता है। प्रस्तुत में साक्षात् श्री जिनेश्वर भगवान तीर्थंकर परमात्मा के अभाव में संसारी आत्मा को आत्मिक विकास
और परमपद यानी मोक्ष के शाश्वत सुख पाने के लिए इस अवसर्पिणी के पाँचवें पारे में और हुंडावसर्पिणी काल में दो ही प्रबल प्रशस्त पालम्बन हैं-जिनबिम्ब और जिनागम। ये संसार सागर से तिर कर मुक्तिरूपी तट पर पहुँचने के लिए प्रत्युत्तम स्टीमर-नौका-जहाज के समान हैं।
संसारी आत्मा कर्माधीन है। उसे जैसा निमित्त प्रालंबन मिलेगा वह वैसा ही कार्य करेगा। अच्छासुन्दर निमित्त पालम्बन मिलेगा तो अच्छा-सुन्दर कार्य करेगा और बुरा निमित्त पालम्बन मिलेगा तो वह बुरा कार्य करेगा। विश्व में जैसे पवित्र धर्मस्थान पैकी जैन मन्दिर एवं जिनमूत्ति आदि प्रात्मोन्नतिकारक प्रशस्त पालम्बन हैं, वैसे- प्रात्म अधःपतनकारक भी अनेक अपवित्र हिंसक-स्थल तथा कामोत्पादक दृश्य एवं वीभत्स सिनेमादि चित्र अप्रशस्त पालम्बन हैं। अप्रशस्त पालम्बनों से प्रात्मा का अवश्यमेव अधःपतन होता है।