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________________ आज तीर्थंकर परमात्मा-जिनेश्वर भगवन्त मुक्तिधाम में हैं तथापि उनके द्वारा किये हुए कार्य, उनका प्रभाव तथा उनके सदुपदेश की विश्व जीवों के जीवन पर पड़ी हुई गहरी छाप भी एक रीति से इस वर्तमान काल में भी तीर्थंकर परमात्मा-जिनेश्वर भगवान के साक्षात्-प्रत्यक्ष विद्यमान होने का संकेत है। उसी तरह उसके केन्द्र रूप में उनके मन्दिर और उनकी मूत्ति-प्रतिमा भी एक प्रकार का प्रत्यक्ष साक्षात् स्वरूप है। नामादि चारों निक्षेपों से वे वन्दनीय एवं पूजनीय हैं। ऐसे वीतराग विभु की मूति-प्रतिमा की अहर्निश वन्दना तथा अर्चना-पूजादि द्वारा सत्कार-बहुमानादि भक्तिभावपूर्वक करना ही चाहिए । श्रीतीर्थंकर परमात्मा-जिनेश्वर भगवान का समस्त जीवन विश्व के सभी जीवों के लिए और अपने लिए पूज्य होने से, उनके च्यवनकल्याणक की सूचक महामंगलकारी चौदह स्वप्नावतार की पूजा, जन्मकल्याणक की सूचक स्नात्रमहोत्सव पूजा तथा उनकी पिण्डस्थादि भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की सूचक अन्य अनेक प्रकार की
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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