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________________ ** पुरो व चन * श्री जैनशासन में श्रात्म-साधना के लिए अनेक अनुपम आलम्बन प्रतिपादित किये गये हैं । यद्यपि वे समस्त श्रालम्बन अपने-अपने स्वरूप की अपेक्षा सर्वोत्तम हैं तथापि अन्य सर्वं श्रालम्बनों में भक्तियोग का आलम्बन आत्म-साधना के लिए आबाल-वृद्ध सबको ही विशेष प्रति उपयोगी होता है । यह आलम्बन ही एक ऐसा विशिष्ट और सर्वमान्य श्रालम्बन है कि जिसके द्वारा आत्मा साधना में पवित्र पन्थे प्रसारण करता है | मोक्ष के लिए भक्तिमार्ग की मुख्यता है, वैसे मोक्ष के साथ योग करा दे ऐसे कई मार्ग हैं | भक्तियोग में श्रात्मा परमात्मा के साथ तन्मय एकरस बन जाय, जैसे दुग्ध- दूध में शक्कर मिल जाय । ऐसा हो जाय तो निश्चित ही भक्त एक दिन भगवान बन सकता है । भक्ति के बल पर तो भूतकाल में अनन्त आत्माएँ जिन जिनेश्वर तीर्थंकर बनी हैं और भविष्य में भी अनन्त बनेंगी । , भक्तियोग की साधना वेदान्त, सांख्य और बौद्ध इत्यादि भारत के सर्वदर्शनों में है । इतना ही नहीं किन्तु मुस्लिम मौर ईसाई धर्म में भी क्रमश: मस्जिद तथा चर्च में जाने की प्राज्ञा है ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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