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________________ ( ३६ ) अब नौ प्रकार की भक्ति का क्रमशः संक्षिप्त वर्णन करते हैं (१) श्रवण-नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का पहला प्रकार है। श्रवण यानी सुनना। अर्थात् सद्गुरु प्रदत्त धर्मदेशना-धर्मोपदेश का श्रवण करना। श्रवण करने के पश्चात् मनन करना। मनन करने के बाद निदिध्यासन करना, जिससे अपनी प्रात्मा में वह सदुपदेश परिणमे । जिसको शास्त्र की भाषा में 'देशनालब्धि' कहते हैं । आज पर्यन्त जितनी आत्माएँ आत्मज्ञान पा चुकी हैं वे सभी देशनालब्धि से ही ऐसा कर सकी हैं। कारण कि, शास्त्र का बोध उपदेश बिना परिणमता नहीं है। विश्व के सर्वदर्शनों में श्रवण का अति माहात्म्य बताया है। ज्ञानी महापुरुषों के सचरित्रों का प्रेमपूर्वक श्रवण करने से अपनी आत्मा में क्षमा आदि अनेक गुण प्रगट होते हैं और धर्म में भी विशेष रुचि होती है। __ सद्धर्म के सदुपदेश द्वारा श्रवण-चिन्तन से श्रद्धा और प्रीति उत्पन्न होती है। जहाँ पर प्रभु का गुणगान होता है वहाँ पर जाने से प्रीति उत्पन्न होती है। प्रीति के अङ्कुर धीरे-धीरे प्रगट होते रहते हैं, जो पुनः श्रद्धा और बाद में भक्ति का प्राकार ग्रहण करते हैं। श्रवण
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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