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( ३५ ) महोत्सव, तथा (५) तीर्थयात्रा; यह पाँच प्रकार की भक्ति है।
जैनेतर धर्म के शास्त्रों में 'नवधा-भक्ति' यानी 'नौ प्रकार की भक्ति' प्रतिपादित की गई हैश्रवण' कीर्तन चिन्तवन ,
वन्दन सेवन५ ध्यान । लघुता' समता एकता ,
नवधा भक्ति प्रणाम ॥१॥
अर्थात्-श्रवण, कीर्तन, चिन्तवन (स्मरण), वन्दन, सेवन (पूजन), ध्यान, लघुता (दास्यभाव), समता (मैत्रीभाव), तथा एकता (आत्मनिवेदन) । यह नौ प्रकार की भक्ति प्रणाम-नमस्कार रूप है। यह 'नवधा भक्ति' 'प्रेमलक्षणा भक्ति' कही जाती है। इसमें-श्रवण, कीर्तन और स्मरण ये तीनों 'वर्ण-अक्षर' के आलम्बन से प्रभु की भक्ति कराते हैं। वन्दन, पूजन और ध्यान प्रभु की प्राकृति के पालम्बन से प्रभु की भक्ति कराते हैं। लघुता (दास्यभाव), समता (मैत्रीभाव) और एकता (प्रात्मनिवेदन) ये तीनों प्रभु के निरालम्बन ध्यान हैं।